वात्सल्य-करुणा की प्रतिमूर्ति : आचार्य प्रमुखसागर


भीनमाल। श्रमण संस्कृति के सुविख्यात एवं प्रतिष्ठित आध्यात्मिक संत प्रमुख सागर म सा हैं। आप वर्तमान शासन नायक भगवान महावीर स्वामी की परंपरा में हुए आचार्य आदिसागर अंकलीकर, आचार्य महावीरकीर्ति, आचार्य विमलसागर एवं आचार्य सन्मति सागर महाराज की निग्रंथ वीतरागी दिगंबर जैन श्रमण परंपरा के प्रतिनिधि गणाचार्य पुष्पदंत सागर महाराज से दीक्षित, उनके बहुचर्चित व ज्ञानवान शिष्य हैं। वह अपनी आगम अनुकूल चर्या एवं ज्ञान से नमोस्तु शासन को जयवंत कर रहे हैं। धर्म प्रभावना करना ही गुरुदेव् का मुख्य उद्देश्य रहा है। अधिक से अधिक लोगों को धर्म मार्ग पर लगाना, जिनवाणी का प्रचार प्रसार करना, ज्ञानियों में ज्ञान की ज्योति जगाना, धर्म से विमुख लोगों को सन्मार्ग दिखाना तथा साथ ही साथ आत्म कल्याण करते हुए संयम एवं चरित्र की आगमानुसार चर्या करना इसी भावना से सदा गुरुदेव ओतप्रोत रहते हैं। सामाजिक एकता की स्थापना के लिए आप सदैव शिक्षा के क्षेत्र में सलग्न रहते है और इसके साथ ही जनकल्याण की भावना से सभी को लाभान्वित करते है। आपने अनेको स्कूलों, कालेजों, अदालतों, राज्यसभाओं, विधान सभाओं मे उपदेशों, प्रवचनों से आमजनों के सांसारिक जीवन के दोषों को दूर करके उन्हें धर्म की राह पर अग्रसर करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। विशेष बात यह है की आमजनों को आपसी मनमुटाव, वैमनस्यता, वैचारिक मतभेदों आदि बुराईयों को त्याग कर प्रेम और भाईचारे के साथ मानव समाज को अच्छाईयों की ओर आने का अनुकरर्णीय योगदान दिया है जिसके फल स्वरुप आज मुझे आपसे जुडऩे का अवसर प्राप्त हुआ और मैंने अपने व्यक्तिगत जीवन में आपके आशीर्वाद से लाभान्वित हुआ हूँ इसमें कोई संदेह नहीं है। गुरुदेव मैं आज जो आपके समक्ष हूँ। वह आप सभी गुरुओं के मंगल आशीर्वाद और मार्गदर्शन के फल स्वरुप हूँ। मीडिया प्रभारी माणकमल भंडारी ने बताया कि आपके सानिध्य में तीर्थक्षेत्रों के निर्माण, संरक्षण, जीर्णोद्धार एवं विकास में समर्पण भाव से निष्ठापूर्वक उल्लेखनीय एवं महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आचार्य ने कई स्थानों पर तीर्थे का निर्माण करवाया है। स्वाध्याय, पठनदृपाठन एवं साधु की व्यावृत्ति में एवं तीर्थ दर्शन संस्कार सहित शिक्षाए अहिंसामय चिकित्सा एवं आत्म कल्याण और जन.जन के कल्याण में आचार्य श्री की विशेष रूचि है। आचार्य के सानिध्य में अनेकों मुनियों की समाधियां हुई हैं। सम्पूर्ण भारतवर्ष में विभिन्न जैन एवं अजैन संस्थाओं, संगठनों द्वारा आचार्य प्रमुख सागर को अनेकों उपाधियों से सम्मानित किया गया है। आपके सानिध्य में भारत के प्रमुख महानगरों में भव्य पंचकल्याणक के आयोजन सफलता पूर्वक सम्पन हुए और आपके द्वारा 20 राज्यों की पद यात्रा 50,000 किमी की पूर्ण की गयी यह सभी के लिए गर्व का विषय हैं। गुरुदेव प्रमुखसागर अनेक विधाओं से भरपूर है। जैसे कि संगीत, काव्य, लेखन, प्रखर एवं ओजस्वी वक्तव्य, प्रवचनकार और कुशलप्रशासक आदि।


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