जालोर। भारतीय कृषि अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान जोधपुर के निर्देशानुसार कृषि विज्ञान केन्द्र जालोर द्वारा राजकीय कृषि महाविद्यालय जालोर में 16 से 22 अगस्त तक 18वां गाजर घास जागरूकता सप्ताह मनाया जा रहा है। सप्ताह के दौरान आयोजित कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं को गाजर घास मुक्त परिसर बनाने के प्रभावी नियंत्रण के लिए रासायनिक, यांत्रिक तथा जैविक प्रबंधों के बारे में पॉवर पॉइंट प्रोजेक्टर के माध्यम से विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि गाजर घास जिसे आमतौर पर सफेद टोपी, असाड़ी, गाजरी, चटक चांदनी आदि नाम से जाना जाता है। यह एक विदेशी आक्रामक खरपतवार व एकवर्षीय शाकीय पौधा है जिसकी लंबाई 1.5 से 2 मीटर तक होती है। यह मुख्यतः बीजों से फैलता है। यह एक विपुल बीज उत्पादक है और इसमें लगभग 5000 से 25,000 बीज प्रति पौधा पैदा करने की क्षमता होती है। बीज अपने कम वजन के कारण हवा,पानी और मानवीय गतिविधियों द्वारा आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाते हैं। केंद्र के पौध संरक्षण वैज्ञानिक डॉ. पी. सी. यादव ने गाजर घास प्रबंधन में काम आने वाले जैविक कीट जाईगोग्रामा बायकोलोराटा के बारे में बताया। उद्यानिकी वैज्ञानिक डॉ. पवन कुमार पारीक ने गाजर घास को विस्थापित करने के लिए चकोड़ा, गेंदा जैसे स्व-स्थायी प्रतिस्पर्धी पौधों की प्रजातियों के बीज का छिड़काव करने के बारे में जानकारी दी। शस्य वैज्ञानिक श्री बीरम सिंह गुर्जर ने इसके रासायनिक नियन्त्रण के बारे में विस्तार से बताया।
इस कार्यक्रम में राजकीय कृषि महाविद्यालय के प्राचार्य श्री अर्जुन सिंह एवम सहायक आचार्य विमल खत्री तथा छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।